Wednesday, 26 June 2019

Door Ki Aawaz (1964)


दूर की आवाज़ (1964)
संगीतकार : रवि
गीतकार : शकील बदायुनी
बनाके मेरा मुकद्दर बिगाड़ने वाले…..क्या यूँही रूठ के जाने को मोहब्बत की थी
मोहम्मद रफ़ी
दिल मेरा आज खो गया है कहीं आपके पाओं के नीचे तो नहीं …..
मोहम्मद रफ़ी
एक मुसाफिर को दुनिया में किया चाहिए सिर्फ दिल में थोड़ी सी जगह चाहिए….
मोहम्मद रफ़ी
हाथों में हाथ हों तो अफ़साने प्यार के मंज़िल पे अपनी चल दिए दीवाने प्यार के
रफ़ी, आशा
हुस्न से चाँद भी शरमाया है तेरी सूरत ने ग़ज़ब ढाया है….
मोहम्मद रफ़ी
हम भी अगर बच्चे होते नाम हमारा होता बबलू….
रफ़ी, आशा, मन्नाडे
मुक़द्दर आज़माना चाहता हूँ तुम्हें अपना बनाना चाहता हूँ….
मोहम्मद रफ़ी

No comments:

Post a Comment